आखिर क्यों नहीं समझ पाते एक दूसरे को पुरुष और महिलाएं ? जानिये कारण
आखिर क्यों नहीं समझ पाते एक दूसरे को पुरुष और महिलाएं ? जानिये कारण
Men and Women: सात जन्मों के वादे के साथ पुरुष और महिलाएं(men and women) को एक ही रिश्ते में सालों-साल एक-दूसरे के साथ रहना होता है। फिर भी वे दोनों एक दूसरे के मन की कई जरूरी बातों को समझ पाने में असमर्थ होते है क्या वजह हो सकती है इसकी क्या प्रकृति ने ही स्त्री और पुरुष को ऐसा बनाया है। आइए जानते इस बारे में डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस का क्या कहना है।
स्त्री-पुरुष(men and women) संबंधों में आपसी समझ की कमी अक्सर सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों की वजह से होती है। साइकोथेरेपिस्ट डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस का मानना है कि स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के बारे में कई महत्वपूर्ण बातों से अनजान होते हैं।
उम्मीद से रिश्ते में टकराव
डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस के अनुसार, पुरुष और महिलाएं अपने पार्टनर से अक्सर अपने समझ के पैमानों पर उम्मीद रखते हैं, जो कि उनके जेंडर स्टीरियोटाइप्स और सामाजिक परिवेश के द्वारा निर्धारित होते हैं। परवरिश के दौरान, यह उम्मीद उन्हें जेंडर के दायरे में बंध देती है, जिसके फलस्वरूप पार्टनर के बीच सोचने और समझने में अंतर आता है। इस अंतर से उत्पन्न होने वाला टकराव और असमंजस अक्सर रिश्तों में जाता है, जहां एक-दूसरे की भावनाओं और सोच को समझने में कठिनाई होती है।
एक-दूसरे के भावनाओं को न समझना
महिलाएं और पुरुषों के बीच मान्यताओं, अनुभवों और समझ में अंतर हो सकता है, जिसके कारण वे अक्सर एक दूसरे के डर को समझने में कठिनाई महसूस कर सकती हैं। पुरुषों और महिलाओं की सोच और प्रतिक्रियाएं अक्सर सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत संदर्भों से प्रभावित होती हैं।
उदाहरण के लिए कई समाजों में पुरुषों को अपने डर और भय को छुपाना सिखाया जाता है। जबकि महिलाओं को अपनी भावनाओं को बयान करने में आसानी होती है। इसलिए जब पुरुष अपने डर को साझा नहीं कर पाते हैं तो महिलाएं इसे समझने में कठिनाई महसूस कर सकती हैं।
समझौता और सहानुभूति को बढ़ावा देने से यह समस्या सुलझाई जा सकती है। महिलाएं और पुरुषों के बीच संवाद और समझौते में समर्थन देना बहुत महत्वपूर्ण होता है ताकि वे एक-दूसरे के भावनाओं और सोच को समझ सकें।
समस्या की जड़ें
परवरिश और जेंडर के दायरे में बचपन से ही समाज पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग तरीके से पालता है। जिससे उनके सोचने और समझने के तरीके में अंतर आ जाता है।पुरुष और महिलाएं एक-दूसरे से अपने जेंडर के मानकों पर उम्मीद रखते हैं जो अक्सर पूरे नहीं हो पाते। और लड़ाई का कारण बनते है। था इसके साथ ही भावनात्मक असुरक्षा भी होती है। पुरुषों को समाज द्वारा इमोशनली स्ट्रॉन्ग और डर से रहित समझा जाता है, जबकि असल में वे भी असुरक्षा और डर से ग्रस्त हो सकते हैं।
समाधान
रिश्ते में बराबरी होनी चाहिए। जब एक पार्टनर एक्टिव और दूसरा पैसिव होता है। तो यह अविश्वास और टकराव का कारण बनता है। खुद को पार्टनर की जगह रखकर सोचना उसकी भावनाओं को समझना और ध्यान से सुनने से तथा अपने विचारों पर अड़े रहने की बजाय एक दूसरे के नजरिए को समझने की कोशिश करें।
ग्राफिक और शोध के अनुसार
रिश्तों में भूमिकाएं: बराबरी के आधार पर जिम्मेदारियों का बांटना और एक्टिव-पैसिव बायनरी से बचना रिश्ते को मजबूत बनाने में सहायक होता है।
सामाजिक धारणाएं: सामाजिक मान्यताओं और पूर्वाग्रहों को छोड़कर, खुलकर संवाद करना और एक-दूसरे को समझने का प्रयास करना चाहिए।तथा यह समझना चाहिए की एक दूसरे की राय अलग अलग हो सकती है। इस प्रकार सही समझ और समानता से रिश्तों में गहराई लाई जा सकती है।