Kanwar Yatra 2024: कांवड़ यात्रा क्यों की जाती है, क्या है इसके पीछे का इतिहास, इस यात्रा का श्रेय आखिर किसको जाता है
Kanwar Yatra: जैसा कि हम सभी जानते है इस साल सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त को खत्म होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं Kanwar Yatra क्यों की जाती है, ये यात्रा सबसे पहले किसने शुरू की होगी आइये जानते है.
हिन्दू धर्म में सावन के महीने का अधिक महत्व है। ऐसा कहा जाता है की भोले के भक्त हर साल इस महीने में कांवड़ [Kanwar Yatra] लेकर जाते हैं और ऐसी मान्यता है की इससे भगवन शिव काफी प्रसन्न होते हैं अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. लोगो के मन में अक्सर ये सवाल उमड़ता है क आखिर पहली बार Kanwar Yatra किसने की थी हमारे समाज में इसे जुडी कई प्रसिद्ध कहानियां हैं. कहीं कहीं तो ये कहा जाता है की सबसे पहले ये प्रथा रावण ने शुरू की थी जो भगवन शिव का एकलौता भक्त था जिसने भगवान शिव की अंधभक्ति की थी और उन्होंने है पहली बार शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया था. कहीं तो ये भी कहानियां भी बनती है की प्रभु श्रीराम ने भी कावड़ियां के रूप में शिवलिंग को गंगाजल अर्पित किया था. सावन के महीने को शुरू होने में ज्यादा दिन नहीं है। ये एकमात्र साधन है जो भक्तों को महादेव से जोड़ता है.
Kanwar Yatra क्यों करते हैं ?
ऐसा माना जाता है की अगर आपको भोलेनाथ को खुश करना है और उनका आशीर्वाद लेके अपना जीवन खुशहाल बनाना है तो Kanwar Yatra से बेहतर उपाए और कुछ नहीं है. Kanwar Yatra एकमात्र ऐसा साधन है जो भगवन शिव को उनके भक्तों से जोड़ता है और ऐसी मान्यता है की शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से भगवन शिव हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. इसके पीछे की एक कथा भी है, लेकिन हमारे पास ये प्रमाण नहीं है की ये सही है या नहीं ऐसा कहा जाता है की जब समुद्र मंथन हुआ तो उसके पश्चात 14 रत्नों में विष निकला तो भगवान शिव एकलौते देव हैं जिन्होंने अपने प्राणो की रक्षा न करते हुए उस विष को पीकर सृष्टि की रक्षा करी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव में अकेले ऐसी ताकत थी कि वो विष को पी सके और जैसे ही उन्होंने विष को पिया उनका गला नीला हो गया. इस वजह से भोलेनाथ नीलकंठ कहा जाता है. तभी से ऐसा मन जाता है की शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ा कर विष का प्रभाव काम होता है और महादेव खुश होते हैं.
सबसे पहली Kanwar Yatra किसने की थी ?
रावण जो भगवान भोलेनाथ का एकलौता भक्त था उसने सबसे पहले Kanwar Yatra पूर्ण की थी. आपको बता दें कि लंकापति रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और उसने कई बार भगवान शिव को खुश कर वरदान प्राप्त किए थे. वहीँ दूसरी तरफ ऐसा माना जाता है कि शिव जी के इस अनन्य भक्त ने ही सबसे पहले कावड़िया के रूप में शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित किया था. सिर्फ रावण ही नहीं, ऐसी भी मान्यता है कि रावण का वध करने वाले प्रभु श्रीराम ने भी कांवड़िए के रूप में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगों, जो झारखंड के देवघर में है, उस पर गंगा जल अर्पित किया था. ऐसा कहा जाता है की मोक्ष का एक रास्ता यही भी है की कावड़ के दौरान शिव जी का नाम लेते हुए चलना इससे अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होता है.
सबसे लम्बी Kanwar Yatra किसने की
हर साल सावन के माह में लाखों की संख्या में कांवडिये दूर दूर से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने अपने गांव वापस लौट जाते हैं, इस यात्रा को Kanwar Yatra कहा जाता है. ऐसे ही एक सच्ची बात है की बाबा भोले के एक भक्त आशीष उपाध्याय ने 22 जुलाई 2016 को हरिद्वार से जल लेकर बाबा विश्वनाथ वाराणसी में 18 दिनों के पैदल यात्रा के बाद लगभग 1032 किलोमीटर यात्रा ख़त्म कर भगवान भोलेनाथ का जल से अभिषेक किया यह आज तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा में शामिल है सावन की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के जरिये से जल की यात्रा यानि Kanwar Yatra का यह अनोखा पर्व भगवान शिव की आराधना के लिए हैं