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Jagannath: जगन्नाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास, जानिए मंदिर के बारे में कुछ रोचक फैक्ट्स

Jagannath: जगन्नाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास, जानिए मंदिर के बारे में कुछ रोचक फैक्ट्स

पूरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है. यह हिन्दुओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है जो उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित किया गया है. भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी यह पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है. आज के उड़ीसा को पुराने समय में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था. यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ स्वंम विराजते हैं.

ऐसा बोला जाता है की भगवान विष्णु जब चारों धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने बद्रीनाथ धाम में वह स्नान करते हैं. पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं. पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण के तमिल नाडु में स्थित रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं उसके बाद द्वापरयुग में भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ बन गए .

पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है. यह नारायण के चार धामों में से एक है. इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी के नाम से भी जाना जाता हैं. यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं. ब्रह्म और स्कंद पुराणो के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिए और तभी से सबर जनजाति के पूज्य देवता बन गए.

सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है. पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काठ से बनाते थे. जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण पुजारी भी हैं. ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते हैं।पुराणो के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है और यहाँ पुरुषोत्तम हरि को पुरुषोत्तम श्रीराम का रूप माना गया है.

सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा गया है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा भी होती है. रामायण के उत्तर खंड में ऐसा लिखा गया है की भगवान राम ने रावण केअनुज यानि की विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की उपासना करने को कहा. पुरी के श्री मंदिर में वर्तमान में भी विभषण की वंदना परंपरा कायम है.

स्कंद पुराणो में हमे पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन देखने को मिलता है. स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह प्रतीत होता है और यह 5 कोस यानी 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है. इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है. सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा स्वंम महादेव करते हैं. शंख के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है.

माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महाकाल की हथेली से चिमट गया था और वहइसी स्थान पर आकर गिरा था, तभी से यहां महादेव की ब्रह्म रूप को पूजा जाता है.शंख के तीसरे वृत्त में मां विमला और नाभि स्थल में भगवान जगन्नाथ रथ सिंहासन पर विराजमान है.

जग्गनाथ पूरी से जुड़े कुछ अनोखें तथ्य

• यह एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है , जहाँ लोग समुन्द्र की लहरो का आनंद लेते है
• यह मंदिर रथ यात्रा के दौरान भगवन जग्गनाथ ,बलभद्र और सुभद्रा का विश्राम स्थल होता है
• इसे भगवन की मौसी का घर भी कहा जाता है
• यह मठ [सिद्ध मठ ] जग्गनाथ मंदिर के पास सिथत है और इसकी स्थापना संत श्रीरामदास जी ने की थीं
• यहाँ पर धार्मिक और आध्यत्मिक गतिविधियां निरंतर रूप से होती रहती हैं
• यहाँ पूरी का प्रमुख शमशान स्थल भी जहाँ लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करते हैं
• ऐसा माना जाता है की यहाँ अंतिम संस्कार करने से आत्मा को शांति मिलती है

क्यों विपरीत दिशा में लहराता है जग्गनाथ मंदिर का ध्वज

ध्वज के विपरीत दिशा में लहराने की कथा हनुमान जी से जुड़ी हुई है. ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी इस क्षेत्र के सभी दिशाओं की रक्षा करते हैं. एक बार जब भगवान जगन्नाथ जी , श्री लक्ष्मी जी के साथ यहां आराम कर रहे थे. तब हनुमान जी द्वार की रक्षा कर रहे थे . कुछ समय बाद जब वहां नारद जी आए और उन्होंने मुख्य द्वार के भीतर देखा तो जगन्नाथ जी उदास बैठे हुए थे. उनके उदास होने का कारण यह था कि समुद्र की तेज आवाज उन्हें परेशान कर रही थी, जिसके कारण वह विश्राम नहीं कर पा रहे थे.

तब नारद जी ने हनुमान जी को इस साडी घटना की जानकारी दि. यह पता चलने के पश्चात हनुमान जी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागो में बांट लिया और मंदिर के आसपास वायु से भी तीव्र गति से चक्कर काटने लगे. जिससे एक ऐसा चक्र बना, जिससे समुद्र की आवाज मंदिर तक नहीं पहुंच पाए. ऐसा मना जाता है कि इसी वजह से ध्वज भी उल्टी दिशा में लहराता है. इसका अनुभव मंदिर में दर्शन करने आए भक्तों को भी होता है. वह जैसे ही सिंह द्वार के भीतर कदम रखते हैं, उन्हें समुद्र की आवाज बीॡकुल नहीं आती है.

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ध्वज को रोज़ाना बदला जाता है. ध्वज परिवर्तन शाम के समय की जाती है. जगन्नाथ जी के तालध्वज से जुड़ी एक मजेदार बात यह है कि ध्वज हवा के विपरीत दिशा में लहराता है. जानकारी के लिए बता दें तो ज्यादातर तटीय क्षेत्रों में समुद्र से जमीन की ओर हवा चलती है, परन्तु पुरी में इससे विपरीत होता है. यहां जमीन से समुद्र की ओर हवा बहती है, जो अपने में एक रहस्य है.

 

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