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कारगिल विजय के 25 साल पुरे होने पर जानिए ‘राजा रामचंद्र की जय’ बोलकर दुश्मन के सामने आए Captain Haneef वीरता की गाथा

कारगिल विजय के आज 25 साल पूरे होने पर Captain Haneef उद्दीन की वीरता और बलिदान की कहानी एक बहुत ही प्रेरणादायक रूप में सामने आती है. Captain Haneef, जो की एक मुस्लिम सोल्जर थे और वह राजपुताना राइफल्स में भर्ती हुए और जहा उनका युद्ध घोष “राजा रामचंद्र की जय” था उन्हें यही बोल के दुश्मन के सामने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था.

प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर

Captain Haneef उद्दीन ने 1996 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में प्रवेश लिया था और 7 जून 1997 को कमीशन प्राप्त कर कैप्टन बने. आर्मी जॉइन करने के मात्र दो साल बाद, उन्हें कारगिल युद्ध लड़ने का अवसर मिला. इस युद्ध के दौरान,Captain Haneef अपनी बहादुरी और सूझबूझ से अपने साथियों को काफी भी प्रेरित किया .

ऑपरेशन थंडरबोल्ट

कारगिल युद्ध में राजपुताना राइफल्स को पॉइंट 5500 को कैप्चर करने के बाद अगले टारगेट पॉइंट 5590 को कैप्चर करना था. इसके लिए ऑपरेशन थंडरबोल्ट चलाया गया, जिसमें तुरतुक इलाके में लगभग 18,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 5590 को कैप्चर करना था. Captain Haneef उद्दीन इस ऑपरेशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे.

राजपुताना राइफल्स के युद्ध घोष “राजा राम चंद्र की जय” के साथ, दुश्मन की अंधाधुंध गोलीबारी का सामना कैप्टन हनीफ और उनकी टुकड़ी ने किया. Captain Haneef ने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों के बीच जाकर उनकी सटीक लोकेशन को मार्क किया, जिससे उनके बाकी सभी साथियों को पता चल सके कि फायरिंग हो कहां से रही है और दुश्मनों के पास कौन-कौन से हथियार हैं.

स्मृति और अंतिम बलिदान

Captain Haneef उद्दीन इस ऑपरेशन के दौरान ही वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनकी बॉडी कई दिनों तक वापस नहीं आ पाई थी, जिस के लिए सेना प्रमुख वेद प्रकाश मलिक ने उनकी मां से माफी भी मांगी. कैप्टन हनीफ की इस बहादुरी को लेखिका रचना बिष्ट ने अपनी किताब में सजो दिया है, जो कि उनकी कहानी को हमेशा जीवंत बनाए रखता है.

Captain Haneef उद्दीन का बलिदान और उनकी वीरता भारतीय सेना और देशवासियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है. आज कारगिल विजय के 25 साल बाद भी, कैप्टन हनीफ की बहादुरी और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता.

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